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________________ दया ११५ गुरुवाणी-२ ये बादल कितने समय तक रहने वाले! इनके चले जाने के बाद वही कड़कड़ाती धूप। उसी प्रकार जीवन में कभी-कभी पुण्य के बादल छा जाते हैं तो हम सब प्रकार से सुखी हो जाते हैं, किन्तु ये बादल कब हट जाएंगे इसका क्या विश्वास? इसीलिए एक कवि ने कहा है - सुत वनिता धन यौवन मातो गर्भतणी वेदना विसरी, सुपनको राज साच करी माचत राचत छांह गगन बदरी.... अर्थात् जिसके पास पुत्र है, धन है, यौवन है और स्त्री है वह मदोन्मत्त होकर गलियारे साँड की तरह चारों पैरों से उछलकूद करता है। स्वप्न में की हुई राजाशाही आँख खुलते ही पूरी हो जाती है। स्वप्न दो प्रकार के होते हैं - १. आँख बन्द होती है तभी प्रारम्भ होता है और आँख खुलते ही वह पूरा हो जाता है। जो हम प्रति रात्रि को देखते रहते हैं। २. जबकि दूसरा स्वप्न आँख खोलने से प्रारम्भ होता है और आँख बन्द करते ही पूरा हो जाता है, यही हमारा जीवन है । महापुरुष कहते हैं - ये पाँच-पच्चीस वर्ष अत्यधिक महत्त्व के हैं। समय रूपी पूंजी चारों गति में समान रूप से मिलती है। देवगण समय को भोगसुख में व्यतीत कर देते हैं। नारकी समय को आर्तध्यान अर्थात् निरन्तर दुःख में समाप्त कर देते हैं। बेचारे तिर्यंच गति के जीव अनेक कष्टों को सहन करने में अपने समय को खत्म करते हैं। मानवों को मिला समय रूपी धन सन्मार्ग या कुमार्ग में व्यय होता है। इस अल्प धन से किस प्रकार का व्यापार करना और किस प्रकार का मुनाफा प्राप्त करना, यह मानव ही समझ सकता है। मानव के अतिरिक्त किसी भी जीव के पास यह समझने की शक्ति नहीं है। इसीलिए महापुरुष कहते हैं - खणं जाणाहि पंडिया।हे पण्डित पुरुष! तुम क्षण को पहचान लो। यह तुम्हारे अमूल्य क्षण पानी के वेग के समान बह रहा है। तुम तुम्हारी आत्मा का हित साधन कर लो और धर्म की आराधना कर लो। जिन्होंने क्षण की महत्ता को पहचान लिया वे तिर गये और जो नहीं पहचान सके वे इस संसार चक्र में घूम रहे हैं।
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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