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________________ १०५ गुरुवाणी-२ स्वार्थी संसार आज्ञा से बारह वर्ष संयम जीवन का और पालन किया। बारह वर्ष व्यतीत होने पर वह पुनः अनुमति माँगने के लिए माँ के पास जाता है। माँ कहती है - वत्स! मेरी अपेक्षा में मेरी गुरुणीजी मेरे से बड़ी हैं। उनकी अनुमति प्राप्त कर ले। वह गुरुणीजी के पास जाता है, अनुमति माँगता है, महत्तरा गुरुणीजी कहती हैं -- हे मुनि! तुम अपनी माता की आज्ञा से बारह वर्ष संयम में ओर रहे तो क्या मेरी आज्ञा से बारह वर्ष ओर नहीं रहोगे? मनोभावों से विचलित मुनि दाक्षिण्यता के कारण अस्वीकार नहीं कर सका। गुरुणी की आज्ञा से बारह वर्ष ओर रहता है। इस प्रकार करतेकरते आचार्य महाराज की आज्ञा और उपाध्याय महाराज की आज्ञा से पुनः बारह-बारह वर्ष तक संयम-जीवन का पालन करता है। उम्र बढ़ती जाती है। ६८ वर्ष का हो गया। अन्त में कंटाला खाकर वह पुनः माँ के पास जाता है। माँ ने भी समझ लिया कि अब अधिक खेंचने से कोई फायदा नहीं। जैसी भवितव्यता होगी वैसा ही होगा, ऐसा सोचकर उसने अनुमति दे दी। लम्बे अरसे से छुपा कर रखी हुई राजमुद्रा और रत्नकम्बल भी देती है और कहती है - पुत्र! तुम साकेत नगर में जाना तथा पुंडरीक राजा को यह राजमुद्रा बता देना । इस मुद्रा से वे तुझे राज्य का भाग दे देंगे। माँ का जीव है न? खुदग कुमार साधु वेश का त्याग कर, अन्य वेश ग्रहण, कर राजमुद्रा और रत्नकम्बल लेकर वहाँ से निकलता है। साकेत नगर आता है। बहुत गई थोड़ी रही .... राजमहल पहुँचते-पहुँचते रात हो गई। राजभवन के आँगने में एक नृत्य समारोह चल रहा था। नटवी (नाचने वाली) नृत्य कर रही थी। बहुत लंबे अरसे के बाद ऐसा देखने को मिला है, इसलिए खुदगकुमार भी उस नृत्य को देखने के लिए वहाँ खड़ा रह जाता है। रात पूरी होने को आ गई है नर्तकी के पैर भी लड़खड़ा गये हैं, आँखे नींद से भर गई हैं किन्तु नर्तिका को अभी तक कुछ भी दान नहीं मिला था इसीलिए वह
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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