________________
८४
हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। नहीं किया । कारण इससे देवताओं के भक्ति का भंग भी था । वास्तव में सूत्र में भक्तिपूर्वक का पाठ होने से इसमें भक्तिधर्म का एक अंग है । इसलिए भगवान् ने मौन रखा, पर मौन स्वीकृति ही समझना चाहिए । यह तो आप सोचिये कि चतुर्थ गुणस्थानवी जीवों के नियम तप संयम तो उदय है नहीं और वे तीर्थंकर नाम कर्मोपार्जन कर सकते हैं तो इसका कारण सिवाय परमेश्वर की भक्ति के और क्या हो सकता है ?
प्रश्न ६३ : उपासक दशांग सूत्र में आनंद काम देव के व्रतों का अधिकार है पर मूर्ति का पूजन कहीं भी नहीं लिखा है ? • उत्तर : लिखा तो है परंतु आपको दिखता नहीं । आवंदने भगवान वीर के सामने प्रतिज्ञा की है कि आज पीछे में अन्य तीर्थों और उनकी प्रतिमा तथा जिस प्रतिमा को अन्य तीर्थी ग्रहण कर अपना देव मान लिया हो तो उस प्रतिमा को भी मैं नमस्कार नहीं करूंगा। इससे सिद्ध है कि