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हाँ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है ।
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प्रतिक्रमणादि विधि से सर्वथा अज्ञात थे वे भी अपनी विधि विधान से सब क्रिया करने में तत्पर है । मेहरबानों यह आपकी खण्डन प्रवृत्ति से ही जागृति हुई है ।
आत्मबंधुओ ! जमाना बुद्धिवाद का है जनता, स्वयं अनुभव से समझने लग गई कि हमारे पूर्वजों के बने बनायें मंदिर हमारे कल्याण के कारण हैं, वहां जाने पर परमेश्वर का नाम याद आता है । ध्यान स्थित शान्त मूर्ति देखकर प्रभु का स्मरण हो आता है जिससे हमारी चित्तवृत्ति निर्मल होती हैं वहां कुछ द्रव्य चढाने से पुण्य बढता है पुण्य से सर्व प्रकार से सुखी हो सुखपूर्वक मोक्ष मार्ग साध सकते हैं । अब तो लोग अपने पैरों पर खडे है । कई अज्ञसाधु अपने व्याख्यान में जैनमंदिर मूर्तियों के खण्डन विषयक तथा मंदिर न जाने का उपदेश करते हैं तो समझदार गृहस्थ लोग कह उठते हैं कि महाराज पहिले भैरु भवानी पीर पैगम्बर कि जहां मांस मदिरादि का बलिदान होता है वो त्याग करवाईये । आपको झुक झुक के वन्दन करनेवालियों के गलों में रहे मिथ्यात्वी