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________________ १६ हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। सिद्ध है फिर स्थानकवासी खण्डन क्यों करते हैं ? क्या इतने बडे समुदाय में कोई आत्मार्थी नहीं है कि जो उत्सूत्र भाषण कर वज्रपाप का भागी बनता है ? ३८ स्थानकवासी और तेरहपन्थियों को आपने समान कैसे कह दिया कारण तेरहपन्थियों का मत तो निर्दय एवं निकृष्ट है कि वे जीव बचाने में या उनके साधुओं के सिवाय किसी को भी दान देने में पाप बतलाते हैं इनका मत तो वि.सं.१८१५ में भीखमस्वामी ने निकाला है। ३९ जब आप मूर्तिपूजा अनादि बतलाते हो तब दूसरे लोग उनका खण्डन क्यों करते हैं ? ४० भला मूर्ति नहीं माननेवाले तो अन्य देवी देवताओं के यहां जाते हैं पर मूर्ति माननेवाले क्यों जाते हैं ? ४१ हमारे कई साधु तो कहते हैं कि मूर्ति नहीं मानना लौंकाशाह से चला है । तब कई कहते हैं कि हम तो महावीर की वंश परम्परा चले आते हैं इसके विषय में आपकी क्या मान्यता है ?
SR No.006121
Book TitleHaa Murti Pooja Shastrokta Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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