________________
कर दिया। जिन सैनिकों ने सामना किया उन्हें उस दुष्ट राजा ने मौत के घाट उतार दिया । राज्य के लोगों में भय फैल गया...आपाधापी और भागम्भाग मच गई । अर्जुनराजा ने राजमहल और राजभंडार पर अपना कब्जा जमा लिया और अपने ही सैनिकों को नियुक्त कर दिये सुरक्षा के लिये...पूरे नगर में घोषणा करवा दी । आज से इस नगरी का राजा अर्जुन होगा । प्रजाजनों को अभयदान है । सभी आनंद से जिएं और व्यापार-धंधा करें।
महाराजा, आपके महामंत्री सुमंत्र नगर में ही एक गुप्त आवास में छुपे हुए हैं । उन्होंने ही मुझे आप तक समाचार भिजवाने के लिये भेजा है । अब आप जो भी उचित समझे वह करें।
राजा के इर्दगिर्द खड़े पराक्रमी सैनिक यह बात सुनकर बौखला उठे....उनका खून गरम हो उठा...गुस्से में कांपते हुए उन्होंने राजा से कहा : 'महाराजा, अपन को अभी, इसी वक्त यहाँ से वापस लौटना चाहिये...देख लेंगे हम कि उस कायर और पीठ के पीछे हमला करनेवाले अर्जुन की बाहों में कितना बल है । आपकी अनुपस्थिति में एक तस्कर की भांति वह नगर में घुस गया है....हम जाकर के उसे वहाँ से मार भगायेंगे।'
राजा हंस स्वस्थ मन से सैनिकों की बात सुनता रहा । उनके चेहरे पर न तो गुस्सा उभरा....न ही चिंता का कोई साया उतरा । उन्होंने स्वस्थ मन से कहा :
'मेरे प्रिय सैनिकों, संपत्ति और आपत्ति तो गत जन्म के कर्मों के कारण आती-जाती रहती है । मूर्ख आदमी संपत्ति पाने पर गुब्बारे की भाँति फूल जाता है और आपत्ति में सर पर हाथ देकर आहे भरता है...जो बुद्धिशाली होते हैं...वे आपत्ति और समृद्धि में दोनों दशा में समान भाव धारण करते हैं । इसलिये जिनयात्रा करने का महान पुनीत अवसर छोड़कर, राज्य के लिये वापस लौटना, मुझे तो उचित प्रतीत नहीं होता....इसलिये, यह यात्रा पूरी किये बगैर मैं तो वापस नहीं लौटूंगा । उत्तम पुरुष एक बार जिस कार्य को हाथ में लेते हैं....उसे विघ्नों से डरकर अधूरा नहीं छोड़ते । वे तो विघ्नों की चट्टानों को चकनाचूर करके सिद्धि के शिखर पर पहुँचते हैं । '
राजा की बात सच थी । पर सैनिकों को पसंद नहीं थी । वे जमीन पर निगाहें रखकर खड़े रह गये । राजा ने अपने घोड़े को एड़ी लगाई और रत्नश्रृंग पर्वत की ओर उसे भगा दिया ।
करीब करीब सभी सैनिक और राजपुरुष हमारे परिवारों का क्या होगा...इस चिंता में डूबे हुए वापस राजपुरी की ओर लौट आये । केवल एक छत्रधर राजा के साथ गया । पर राजा हंस तो निर्भय, निश्चिंत
और प्रसन्न होकर आगे बढ़ता ही रहा । ____ परंतु राजा रास्ता भटक गया । वह गलत दिशा में चलने लगा । एक जंगल में राजा पहुँचा । राजा ने सोचा 'मेरे सुंदर वस्त्र और कीमती अलंकार देखकर शायद चोर लुटेरे मेरे रास्ते में रुकावट पैदा करेंगे....फिजूल की लड़ाई होगी...इसलिये अच्छा यही होगा कि मैं इस छत्रधर की शाल मेरे शरीर पर ओढ़ लूं और रत्नश्रृंग पर्वत पर जाऊँ ।'
96