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TD. सूर्य-चन्द्र कैसे प्रकाशित होते हैं
आज का विज्ञान कहता है कि सूर्य आग का दहकता गोला है । यह हाईड्रोजन गैस से भरा है। हाईड्रोजन गैस लगातार हिलीयम गैस में रूपांतरित हो रहा है जिससे सूर्य जल रहा है। इसी से प्रकाश तथा उष्णता हमें प्राप्त हो रही है।
__ जरा ध्यान से विचार कीजिये कि हाईड्रोजन गैस हिलीयम में रूपान्तरित हो तो उस हाईड्रोजन के उपर किसका नियंत्रण है ? वह एकदम क्यों नहीं जल जाता? यह सब व्यवस्था कौन करता है ?
और यदि सूर्य जल रहा है तो जैसे जैसे उसके समीप जाये वैसे वैसे उष्णता अधिक लगनी चाहिए । परन्तु ऐसा नहीं होता है । हिमालय, आबु अथवा गिरनार पर जैसे जैसे ऊँचाई पर जाये वैसेवैसे शीतलता का अनुभव होता है।
पुन: जैसे-जैसे समय व्यतीत होता जा रहा है वैसे-वैसे उष्णता में कमी होनी चाहिए । किन्तु हजारो लाखों वर्षों पूर्व के इतिहास में उष्णता के प्रमाण का वर्णन आज जैसा ही कहा जाता है। ____ऐसे अनेक प्रश्न अभी भी अनुत्तरिय है । जबकि हमने स्पष्ट बताया है कि सूर्य रत्नों का विमान है । ये रत्न आतप नामक कर्म के उदित होने के कारण, जिस प्रकार रत्न अथवा रेडियम को ईंधन की आवश्यकता नहीं होती है, वे सदा के लिए अपने स्वभाव से ही प्रकाशित होते हैं। उसी प्रकार सूर्य का प्रकाश एवं उष्णता हमेशा के लिए एक जैसी रहती है । सूर्य के रत्नों का गुण ऐसा है कि जैसेजैसे इसके नजदीक जाये वैसे-वैसे उष्णता कम लगती है। बिलकुल नजदीक पहुँचे तो शीतलता का अनुभव होता है । इसी कारण पर्वतों पर गरमी कम लगती है । क्योंकि सूर्य दहकता गोला नहीं वरन् रत्नों का विमान है । इसी प्रकार चन्द्रमा भी उद्योत नामक कर्मवाला रत्नों का बना विमान है । यह सदा शीतल सौम्य तथा कांतिवाला है । उसे भी किसी ओर के प्रकाश की अथवा ईंधन की आवश्यकता नहीं होती है।
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