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आदि पाप के उदय से इस भव में दुःखी और पुन: पाप बांधकर नरक में दुःख को पाते हैं, जैसे काल सौकरिक कसाई।
_c.श्रावक जीवन के बारह व्रत 1) स्थूल हिंसा त्याग : चलते फिरते निरपराधी जीवों को निरपेक्षता से जानबूझकर नही मारना । हिंसक
दवाई का उपयोग नहीं करना । खरगोश, हिरन, मछली, आदि का शिकार नहीं करना। 2) स्थूल झूठ का त्याग : किसी का प्राण जाये ऐसा झूठ नहीं बोलना । 3) स्थूल चोरी का त्याग : डाका डालना, जेब काटना, घरफोडी, चोरी इत्यादि नहीं करना । 4) स्थूल अब्रह्म त्याग : परस्त्री, वेश्या (बहनो के लिए - परपुरुष) के साथ कभी दुराचार नहीं करना।
शादी नहीं होने तक संपूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना। शादी होने के बाद एक महिने में ---- दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना । 5) स्थूल परिग्रह त्याग : धन, धान्य, जमीन, मकान, सोना, चांदी के जेवर आदि कुल मिलाकर --
किलो सोना से ज्यादा अपनी जायदाद (मूडी) नहीं रखना । 6) दिशापरिमाण : भारत के बाहर नहीं जाना (पांच बार की छूट)। उपर 5 कि.मी. से ज्यादा एवम् नीचे
1 कि.मी. से ज्यादा नहीं जाना (जीवन भर के लिए) 7) भोगोपभोग परिमाण : एक माह में ------ रात्रि भोजन त्याग, शाम के भोजन के बाद पानी, दवा सिवाय सब का त्याग । मांस, मच्छी, अंडा, शहद, मक्खन, शराब का संपूर्ण त्याग । प्रतिदिन 25 से ज्यादा द्रव्यों का त्याग करुंगा। एक महिने में अनंतकाय (जमीकंद) का ---- दिन त्याग । होटल, चुनाभट्टी, शस्त्र बनाना, विष, मांस मच्छी अंडे बेचने का त्याग । तालाब, कुआं सुखाना, वन
जलाना इत्यादि का त्याग। द्विदल, साबूदाना (अनंतकाय), ब्रेड, केक, बाहर के दहीवडा का त्याग। 8) अनर्थदंड का त्याग : दुर्ध्यान करना, गंदी सिनेमा, खराब नोवल पढने का त्याग। कुत्ता, मुरगी की
लडाई नहीं देखनी। होली नहीं खेलना, फटाके नहीं फोडना । एक वर्ष में एक से ज्यादा सर्कस, नाटक, जादू के खेल नहीं देखना। उद्भट (शृंगारी) ड्रेस नहीं पहनना, शिकार नहीं करना, जुआ
नहीं खेलना, टी.वी., विडियो, टेपरिकार्डर, आदि को देखना सुनना कम करना । 9) सामायिक की प्रतिज्ञा : प्रतिदिन 1 सामायिक करना। अथवा एक वर्ष में .......सामायिक करना ।
सामायिक में प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, जापमाला, आदि करना। 10)देशावगासिक व्रत : साल में कम से कम एक करना। (एकाशना के तप के साथ, दो प्रतिक्रमण और ___ आठ सामायिक करने पर यह व्रत होता है।) 11)पौषध व्रत : साल में कम से कम एक बार पौषध (संपूर्ण या आधा दिन का) करन । 12)अतिथि संविभाग : पौषध के बाद दूसरे दिन एकाशना करना साधु, साध्वीजी को वोहराकर या
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