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________________ उपाध्यायजी एवं साधु महात्मा जो बताये गये हैं वे कोई व्यक्ति विशेष न होकर गुण रूप में है । अत: कोई बाधा नहीं है। प्रश्न: गौतमस्वामीजी वगैरह गणधर की प्रतिमा की पूजा करने के बाद प्रभु पूजा कर सकते हैं? उत्तर: गौतमस्वामी एवं पुण्डरिक गणधर वगैरह की प्रतिमा यदि पर्यंकासन (सिद्ध मुद्रा) में हो तो उसकी पूजा करने के बाद प्रभुजी की पूजा कर सकते हैं, परंतु यदि गुरु मुद्रा (केवलज्ञानी की अपेक्षा से) में हो तो उनकी पूजा प्रभु पूजा करने के बाद में ही करनी चाहिये । प्रश्न: शासन के देवी-देवता की पूजा कैसे करनी चाहिये ? उत्तर: शासन के देवी-देवता सम्यकत्वधारी एवं प्रभु के पुजारी होने से अपने साधर्मिक हैं । अत: अंगूठे से मस्तक पर तिलक करना चाहिये तथा प्रणाम कहना चाहिये । परन्तु उनके सामने अक्षत आदि से साथीया या त्रिशूल नहीं बनाना चाहिये एवं खमासमण भी नहीं देना चाहिए । प्रश्न: केसर कितनी कटोरी में लेना चाहिये? एवं उसका उपयोग कैसे करना चाहिये? उत्तर: केसर अलग-अलग कटोरियों में लेने की कोई विशेष जरूरत नहीं है । एक ही कटोरी से क्रमश: परमात्मा, सिद्धचक्रजी, गणधर भगवंत, गुरु भगवंत एवं अंत में शासन देवी-देवता की पूजा कर सकते हैं । यदि मूलनायक भगवान की जल पूजा बाकी हो, तो अन्य भगवान की पूजा पहले कर सकते हैं । यदि मूलनायक भगवान की जल पूजा बाकी हो एवं अन्य भगवान की पूजा पहले कर लेनी हो तो बहुमानार्थ अलग से थोड़ा केसर रख सकते हैं। पहले से ही केसर इतना ही ले कि अंत में संघ का माल वेस्ट न हो । तथा केसर की कटोरी, थाली अपने हाथ से साफ धोकर व्यवस्थित स्थान पर रखनी चाहिये । क्योंकि प्रभु मंदिर कोई संघ अथवा पुजारी का ही नहीं अपना भी है । हाथ एकदम साफ धोएँ, ताकि उसमें केसर रह न पाए । अन्यथा केसर रह जाने पर खाते समय पेट में जाने से देव-द्रव्य भक्षण का दोष लगता है । पुष्पपूजा करने की विधि * सुगंधित, अच्छे, अखंड तथा ताजे फूल ही प्रभुजी को चढावें, जैसे गुलाब, चंपा, मोगरा आदि। * नीचे गिरे हुए या पाँव तले आये हुए या पिछले दिन चढाये हुए पुष्प प्रभुजी को नहीं चढावे । * पुष्पों की पंखुड़ियों को नहीं तोड़े अथवा टूटी हुई पंखुड़ियों को प्रभुजी को नही चढावे | * हाथ से गुंथी पुष्पों की माला चढाईये (सूई धागे से गुंथी माला नहीं) । प्रश्न: पुष्प तो वनस्पतिकाय का प्राणी है । उसमे हमारे जैसा ही जीव है - आत्मा है । वृक्ष पर से उसे चुनने पर पुष्प के जीवन को अवश्य किलामणा (पीड़ा) होती है - पहुँचती है । तो फिर पूजा की प्रवृत्ति में ऐसी हिंसामय पद्धति क्यों अपनाई गयी ? अहिंसा प्रधान शासन में ऐसी हिंसा का विधान क्यों ? 18
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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