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________________ 2. मृषावाद - झूठ बोलने वाला । मृषा + वाद - झूठ बोलना या वो कडवा वचन जो सत्य हो तो भी नहीं बोलना चाहिये । जिससे किसी का बुरा हो, नुकसान हो, ऐसा सच भी नहीं बोलना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से भी 'मृषावाद' का दोष लगता है। शास्त्रों में कहा गया है : "सदा तोल मोल के बोल"। यानि हित मित एवं मधुर वचन बोले । 3. अदत्तादान - चोरी । अदत्त+आदान = वो वस्तु लेना जो उसके मालिक ने स्वयं नहीं दी हो, वह अदत्तादान यानि चोरी कहलाती है। और किसी को बिना पूछे उसकी चीजे लेना और फिर लौटाना यह भी चोरी है। 4. मैथुन - अब्रह्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन नहीं करना । स्त्री को पुरूष से एवं पुरूष को स्त्री से दूर रहना । मृषावाद 5. परिग्रह - धन, • दौलत, जमीन आदि के प्रति मूर्च्छा धन, जमीन, जायदाद आदि की तीव्र इच्छा एवं लोभ से ग्रहण करना, इकट्ठा करना। इसमें कपड़े आदि भी जरूरत से ज्यादा रखने पर परिग्रह का दोष लगता है । ज्यादा परिग्रह मनुष्य को दुर्गति में ले जाता है । आपस में वैर या दुश्मनी करवाने वाला कारण यही है। मानसिक पीड़ा का मूल कारण यही है। 6. क्रोध - गुस्सा, कोप । क्रोध करने से जीव को कोई होश नहीं रहता। वह आवेश में आकर बहुत गलत काम करता है जिससे बाद में पछताना पड़ता है। इससे बुद्धि का नाश क्रोध होता है। जैसे चंडकौशिक की तरह पूर्वभव में किये क्रोध के कारण हुई उसकी दुर्गति। 70 3 अदत्तादान मैथुन 4 परिग्रह 5
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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