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________________ जयणा: 1. स्नान में आधी बाल्टी पानी का ही उपयोग करें। 2. गीजर के पानी का उपयोग न करें। 3. पानी के जीवों की जयणा बराबर करें। 4. पानी छानकर उपयोग में ले। (3) तेउकाय : एक चावल के दाने जितने अग्नि के जीव यदि अपना शरीर खसखस के दानें जितना बना दें तो इस जंबूद्वीप में नहीं समा पाएंगे। यह दश दिशाओं का शस्त्र हैं। सब जीवों का नाश करता है। सर्व प्रकार की इलेक्ट्रिसिटी एवं अग्नि में यह जीव हैं। सावधानी : स्वीच एवं गैस का उपयोग जितना हो उतना कम करें। इलेक्ट्रिक साधनों की अनुमोदना नहीं करना। जैसे लाइटर, स्वीच, टी.वी. आदि। (4) वाउकाय : एक नीम के पत्ते जितनी हवा में रहे हुए वाउकाय के जीव यदि अपना शरीर लीख जितन बना दे तो जंबूद्वीप में नहीं समा पाएंगे। नियम : पंखा बारबार चालू नहीं करें, सूखे हुए कपड़े तुरंत लें, झूला न झूलें। (5) वनस्पतिकाय : दो प्रकार : प्रत्येक एवं साधारण वनस्पति। जिसमें एक शरीर में एक जीव है, वह प्रत्येक एवं एक शरीर में अनंत जीव है वह साधारण । जैसे भिंडी, सेब आदि प्रत्येक वनस्पति है। आलु, गाजर आदि साधारण वनस्पति है। नियम हरी वनस्पति पर नहीं चलना, पेड़ को नहीं छूना, तिथि के दिन लीलोत्तरी का त्याग करना। बेइन्द्रिय : 22 प्रकार के अभक्ष्य में ये जीव असंख्य होते हैं - द्विदल, ब्रेड आदि अभक्ष्य का त्याग करने पर इन जीवों को अभयदान मिलता है। तेइन्द्रिय : धनेड़ा, जू आदि। धान्य में धनेड़ा आदि एवं माथे में जूं आदि की उत्पत्ति न हो उसका पहले से ही उपयोग रखें एवं हो जाये तो सावधानी से उसकी जयणा करें। सड़ा धान्य धूप में न रखें। पहचान : लगभग 4 अथवा 6 पैर वाले होते हैं। चउरिन्द्रिय : मच्छर, भमरी आदि। मच्छर के लिए दवाई का उपयोग न करें। पहचान - लगभग 6 या 8 पैर होते हैं। मूंछ होती है और छोटे पंख होते हैं। बेइ., तेइ., चउ., इन तीनों को विकलेन्द्रिय भी कहते हैं। यहाँ तक के सब जीव संमुर्छिम होते हैं। 5-1. पंचेन्द्रिय तिर्यंच : ये समुर्छिम एवं गर्भज दो प्रकार के होते हैं। गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंच : गाय, बैल, साँप, नोलिया, कबूतर, चिड़िया, मछली, मगरमच्छ ये गर्भ से उत्पन्न होते हैं इसलिए गर्भज कहलाते हैं। संमुर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच : ये जीव गर्भज तिर्यंच जैसे ही दिखते हैं। अमुक प्रकार के चूर्ण आदि के मिश्रण से भी इन्हें उत्पन्न किये जा सकते हैं। नियम शेम्पु, लिस्टिक, चमड़े के बेल्ट आदि प्राणीज वस्तुओं का उपयोग नहीं करना।
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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