SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 8. मेन्टोस : इसे बनाने में बीफटेलो, बोन (हड्डी पाउडर और जिलेटीन) का उपयोग किया जाता है। 9. पोलो : इसमें जिलेटीन एण्ड बीफ ओरिजीन गाय-बैल के मांस का मिश्रण किया जाता है। इसे खाने वालों के स्वभाव में तीखापन, बात-बात में चिडचिडापन आदि मांसाणु के कारण होता है। 10. नूडल्स : सेव पैकेट - जिसमें चिकन फ्लेवर (मुर्गी का अंडे का रस) होता है जो नास्ते में खाते हैं। 11. सुप पाउडर तथा सुप क्युब्ज : इसमें भी मुर्गी का रस आता है। 12. पेप्सीन : साबुदाना की वेफरें : रतालु नाम के जमीनकंद के रस से बनती है। रस के कुंड में असंख्य कीडे आदि जन्तु पैर से रौंद दिये जाते हैं। उस रस के गोल-गोल दानों को साबुदाना कहते , हैं। इसमें अनंतकाय और असंख्य त्रस जन्तुओं का कचुमर निकलता है। 13. टूथ पेस्ट : सभी में प्राय: अंडे का रस, हड्डी का पाउडर तथा प्राणिज ग्लिसरीन की मिलावट होती है। इसके स्थान पर अमर मंजन, वज्रदन्ती, काला दन्त मंजन वगैरह उपयोग करें। 14. स्नान का साबुन : प्राणिज चर्बी है जो स्वयं टेलों से बनती हैं। 15. लिपस्टीक, आइब्रो, शेम्पू : इसमें जानवरों की हड्डी का पाउडर, लाल लहू-खून, चर्बी, जानवरों की निचोड़ का रस होता है। इन सब की जांच सुअर, चूहे, बंदर, वगैरह की आँखों में की जाती है। जिससे वे अंधे हो जाते हैं। अत: हे दयावान्। भव्य जीवों, आप उनका उपयोग खाने एवं शरीर के लिए न करें। अभयदान दीजिए। इन समस्त हेतुओं को दृष्टि में रखते हुए अभक्षता को भली-भाँति समझकर अभक्ष्य पदार्थों का त्याग करना उचित है। अभक्ष्य पदार्थों का और विशेष वर्णन गुरुगम से तथा 'अभक्ष्य अनंत काय विचार', 'आहार शुद्धि प्रकाश' आदि ग्रंथों से जानना चाहिए। जिनाज्ञा विरूद्ध लिखा हो तो मिच्छामि दुक्कडं। B. होटल त्याग *एक बार एक महाराज साहेब सुबह 5 बजे विहार कर रहे थे तब एक होटल वाला आदमी चटनी पीसने के लिए पत्थर धोए बिना पीसने लग गया। महाराज साहेब ने पूछा पत्थर क्यों नहीं धते हो ? उसने कहा इस चटनी के पत्थर को धोकर 6 महीने हो गए हैं। नहीं धोने पर इसमें सड़ा (जीवात) उत्पन्न होता है। और वह जीवात चटनी के साथ पिसने से चटनी में खूब टेस्ट (स्वाद) आता है यदि हम पत्थर धोकर करेंगे तो हमारी और तुम्हारे घर की चटनी में फरक नहीं रहेगा। अर्थात् हमारा धंधा नही चलेगा। लोग हमारी चटनी खाने के लिए ही आते हैं। होटल की चटनी एवं वहाँ की इटली वगैरह के घोल एवं घोल के बर्तन कई दिनों से खुले पड़े रहते है। उसमें मक्खी -मच्छर, कीड़ियाँ वगैरह मसाला के रूप में आ जाते हैं। उससे चटनी में मादकता (एल्कोहॉल) आती है। अत: होटल का कभी नहीं खाना चाहिए।
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy