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पुन: उग जाते हो उसे अनंतकाय कहते हैं। जिसे खाने से अनंत जीवों का नाश होता है। जैसे - आलू, प्याज, लहसून, गीली हल्दी, अदरक, मूला, शकर कंद, गाजर, सूरन कंद, कुँआरपाठा आदि 32 अनंतकाय त्याज्य है। जिन्हें खाने से बुद्धि विकारी, तामसी और जड़ बनती है। धर्म विरूद्ध विचार आते
(17) आचार : कोई आचार दूसरे दिन तो कोई तीसरे दिन और कोई चौथे दिन अभक्ष्य हो जाता है। आचार में अनेक त्रस जंतु उत्पन्न होते हैं और अनेक मरते हैं।
जिन फलों में खट्टापन हो अथवा जो वैसी वस्तु में मिलाया हुआ हो ऐसे आचार में तीन दिनों के बाद त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं। परंतु आम, नींबू आदि वस्तुओं के साथ न लिया हुआ गूंदा, ककडी, पपिता, मिर्च आदि का अचार दूसरे दिन अभक्ष्य हो जाता है। जिस आचार में सिकी हुई मेथी डाली गयी हो, वह भी दूसरे दिन अभक्ष्य हो जाता है। मेथी डाला हुआ आचार कच्चे दूध दही या छाछ के साथ नहीं खाना चाहिए। चटनी का भी इसी तरह समझना चाहिए। अच्छी तरह से धूप में न सुखाया हुआ आम, गूदा और मिर्ची का अचार भी तीन दिनों के बाद अभक्ष्य हो जाता है। अच्छी तरह से धूप में कडक होने के बाद तेल, गुड आदि डालकर बनाया हुआ आचार भी वर्ण, गंध, रस और स्पर्श न बदले तब तक भक्ष्य होता है, बाद में अभक्ष्य हो जाता है। फूलन आने के बाद आचार अभक्ष्य माना गया है। गीले हाथ या गीला चम्मच डालने से अचार में फूलन आ जाने के कारण वह अभक्ष्य हो जाता है। अत: अनेक त्रस जंतुओं की हिंसा से बचने के लए आचार का त्याग करना लाभदायी है। (18) द्विदल : जिस में से तेल न निकलता हो, दो समान भाग होते हो और जो पेड के फलस्वरूप न हो ऐसे दो दलवाले पदार्थों को कच्चे दूध, दही या छाछ के साथ मिलाने से तुरन्त बेइन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। जीव हिंसा के साथ आरोग्य भी बिगड़ता है। अत: अभक्ष्य है। जैसे - मूंग, मोठ, उड़द, चना, अरहर, वाल, चँवला, कुलथी, मटर, मेथी, गँवार तथा इनके हरे पत्ते, सब्जी, आटा व दाल और इनकी बनी हुई चीजें, जैसे मेथी का मसाला, आचार, कढी, सेव, गाँठिये, खमण, ढोकला, पापड, बूंदी, बडे व भजिएँ आदि पदार्थों के साथ दही या कच्चा दूध मिश्रित हो जाने पर अभक्ष्य हो जाते हैं। श्रीखंड, दही मट्ठे के साथ दो दल वाली चीजें नहीं खाना चाहिए। दूध-छाछ, दही को अच्छी तरह से गरम करने के बाद उसके साथ दो दलवाले पदार्थ खाने में कोई दोष नहीं है। भोजन के समय ऐसे खाद्य पदार्थों का विशेष ध्यान रखना जरूरी है। होटल के दही बडे आदि कच्चे दही के बनते हैं अत: वे अभक्ष्य कहलाते हैं। इस तरह उनका त्याग रखना योग्य है। (19) बैंगन : बैंगन में असंख्य छोटे-छोटे बीज होते हैं। उसके टोप के डंठल में सूक्ष्म त्रस जीव भी होते हैं। बैंगन खाने से तामसभाव जागृत होता है। वासना-उन्माद बढ़ता है। मन ढीठ बनता है। निद्रा व प्रमाद भी बढता है, बुखार व क्षय रोग होने की संभावना रहती है। ईश्वर स्मरण में बाधक बनता है। पुराणों में भी इसके भक्षण का निषेध किया गया है।