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कण-कण में असंख्य जीव हैं। बर्फ जीवन निर्वाह के लिए भी आवश्यक नहीं है। अत: बर्फ से बननेवाले शर्बत, आइसक्रीम, आइसफ्रुट आदि सभी पदार्थ अभक्ष्य हैं। इसके भक्षण से मंदाग्नि, अजीर्ण आदि रोगों की उत्पत्ति होती है। बर्फ आरोग्य का दुश्मन है। फ्रीज के पेय पदार्थ भी हानिकारक होते हैं। अत: इनका त्याग भी उपयोगी होता है।
( 11 ) जहर (विष) : जहर खनिज, प्राणीज, वनस्पतिज और मिश्र, ऐसे चार प्रकार का होता है। संखिया, बच्छनाग, तालपुट, अफीम, हरताल, धतुरा आदि सभी विषयुक्त रसायन हैं जिन्हें खाने से मनुष्य की तत्काल मृत्यु भी हो सकती है। ये अन्य जीवों का भी नाश करते हैं। भ्रम, दाह, कंठशोष इत्यादि रोगों को उत्पन्न करते हैं। बीड़ी, तम्बाकू, गांजा, चरस, सिगरेट आदि में जो विष है, वह मनुष्य के शरीर में प्रवेश करके अल्सर, केन्सर, टी.बी. रोगों को उत्पन्न करता है। विष स्व और पर का घातक है । अत: त्याज्य है।
(12) ओला : ओले में कोमल और कच्चा जमा हुआ पानी है, जो वर्षाऋतु में गिरता है। उस के खाने का कोई प्रयोजन नहीं है। बर्फ में जितने दोष हैं, उतने ही इस में भी होते हैं, ऐसा जानकर उसका त्याग करना चाहिए।
(13) मिट्टी : मिट्टी के कण कण में असंख्य पृथ्वीकाय के जीव होते हैं। इस के भक्षण से पथरी, पांडुरोग, सेप्टिक, पेविस जैसी भयंकर बिमारियाँ होती है। किसी मिट्टी में मेंढक उत्पन्न करने की शक्यता होती है। अतः उस स पेट में मेंढक उत्पन्न हो जाएँ तो मरणान्त वेदना सहन करनी पड़ती है।
(14) रात्रि भोजन : यह नरक का प्रथम द्वार है। रात को अनेक सूक्ष्म जंतू उत्पन्न होते हैं। तथा अनेक जीव अपनी खुराक लेने के लिए भी उड़ते हैं। रात को भोजन के समय उन जीवों की हिंसा होती है। विशेष यह है कि यदि रात को भोजन करते समय खाने में आ जाएँ तो जूं से जलोदर, मक्खी से उल्टी, चींटी
बुद्धि मंदता, मकड़ी से कुष्ठ रोग, बिच्छु के काँटे से तालुवेध, छिपकली की लार से गंभीर बीमारी, मच्छर से बुखार, सर्प के जहर से मृत्यु, बाल से स्वरभंग तथा दूसरे जहरीले पदार्थों से जुलाब, वमन आदि बीमायाँ होती हैं तथा मरण तक हो सकता है। रात्रि भोजन के समय अगर आयुष्य बंधे तो नरक व तिर्यंच गति का आयुष्य बंधता है। आरोग्य की हानि होती है। अजीर्ण होता है। काम वासना जागृत होती है। प्रमाद बढ़ता है। इस तरह इहलोक परलोक के अनेक दोषों को ध्यान में रखकर जीवनभर के लिए रात्रि - भोजन का त्याग लाभदायी है।
(15) बहुबीज : जिन सब्जियों और फलों में दो बीज के बीच अंतर न हो, वे एक दूसरे से सटे हुए हो, गुदा थोड़ा और बीज बहुत हो, खाने योग्य थोड़ा और फेंकने योग्य अधिक हो, जैसे कवठ का फल, खसखस, टिंबरू, पंपोटा आदि । उनको खाने से पित्त-प्रकोप होता है और आरोग्य की हानि होती है। ( 16 ) अनंतकाय - जमीनकंद : जिस के एक शरीर में अनंत शरीर हो, उसे साधारण वनस्पति कहते हैं, जिसकी नसे, सांधे, गांठ, तंतू आदि न दिखते हो, काटने पर समान भाग होते हो, काटकर बोने पर भी
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