________________
•
(7) शराब (मदिरा) : मदिरा, बीयर, सुरा, द्राक्षासव, ब्रांडी, भांग, वाईन आदि के नाम से पहचानी जाती है। शराब बनाने के लिए गुड़, अंगूर, महुडा आदि को सड़ाया जाता है। उबाला जाता है। इस तरह उस में उत्पन्न अनगिनत त्रस जीवों की हिंसा होती है। तथा शराब तैयार होने के बाद भी उसमें अनेक त्रस जीव उत्पन्न होते हैं और उसी में मरते हैं। शराब पीने के बाद मनुष्य अपनी सुध-बुध भी खो बैठता है। धन की
होती है और काम क्रोध की वृद्धि होती है। पागलपन प्रगट होता है। आरोग्य का विनाश होता है। और अविचार, अनाचार, व्यभिचार का प्रादुर्भाव होता है। आयुष्य को धक्का लगता है। विवेक, संयम, ज्ञानादि गुणों का नाश होता है। फलतः जीवन बरबाद होता है। अतः उसका त्याग करना ही श्रेयस्कर है। (8) मांस : यह पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा से प्राप्त होता है। मांस में अनंतकाय के जीव, त्रस जीव एवं समुर्च्छिम जीवों की उत्पत्ति होती है। मांस भक्षण से अनेक जीवों की हिंसा होती है। इसके भक्षण से मनुष्य की प्रकृति तामसी बनती है और वह क्रूर बनता है। केन्सर आदि भयंकर रोग भी होने की संभावना रहती है। कोमलता एवं करूणा का नाश होता है। पंचेन्द्रिय जीवों के वध से नरक गति का आयुष्य बंधता है, जिस से नरक में असंख्य वर्षों तक अपार वेदना भोगनी पड़ती है। अनेक धर्मशास्त्र दया और अहिंसा धर्म का विधान करते हैं, उनका उल्लंघन होता है। मांस खाने के त्याग की तरह अंडे खाने का भी त्याग करना चाहिए, क्योंकि अंडे में पंचेन्द्रिय जीवों का गर्भ रस रूप में रहता है, अत: उसके खाने से भी मांस जितना दोष लगता है। अंडे में कोलेस्टरोल से हृदय की बीमारी होती है, किडनी के रोग होते हैं, कफ बढ़ता है तथा टी.बी. संग्रहणी आदि रोगों का शिकार बनकर जीवनभर भुगतना पड़ता है। और यह तर्क शुद्ध है कि अंडा निर्जीव नहीं होता, तथा वनस्पति जन्य भी नहीं होता। वह मुर्गी के गर्भ में रक्त व वीर्यरस से बढ़ता है । अत: वह शाकाहार नहीं है। अतः मांस भक्षण में अत्यंत जीवहिंसा जानकर उसका त्याग करना हितावह है।
आजकल जो वेजिटेरियन अंडे के नाम से जो झूठे विज्ञापन (Adve.) देते है वह भी मांसभक्षण ही है। क्योंकि उसमें भी पंचेंद्रिय जीव जन्म ले चुका है। अगर Veg. अंडे है तो मशीन से क्यों नही बना सकते या सब्जी की तरह खेतों में क्यों नहीं उगा सकते ? मुर्गी ही क्यों अंडे देती है। जरा सोचकर सावधान हो जाइए ।
(9) मक्खन : (बटर - पोलशन) मक्खन को छाछ में से बाहर निकालने के बाद उस में उसी रंग के त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं । मक्खन खाने से जीव विकार वासना से उत्तेजित होता है । चारित्र की हानि होती है । बासी मक्खन में हर पल रसज जीवों की उत्पत्ति होती रहती है। इसे खाने से अनेक बीमारियाँ भी हो जाती है। अत: मक्खन खाने का त्याग करना ही श्रेयस्कर है।
इस तरह शहद, मदिरा, मांस और मक्खन ये चारों महा विगई विकार भावों की वर्धक और आत्म गुणों की घातक है। अत: इनका हमेशा के लिए त्याग करना ही चाहिए।
(10) बर्फ (हिम) : छाने अनछाने पानी को जमाकर या फ्रीज में रखकर बर्फ बनाया जाता है। जिस के
35