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________________ दीक्षा कल्याणक : दीक्षा तणो अभिषेक जेनो योजता इन्द्रो मली शिबिका स्वरूप विमानमा विराजता भगवंतश्री अशोक पुन्नाग तिलक चंपा वृक्ष शोभित वन महीं एवा प्रभु अरिहंत ने पंचागं भावे हुँ नमुं ।। . केवल ज्ञान कल्याणक : . जे पूर्ण केवलज्ञान लोकालोकने अजवालतुं जेना महा सामर्थ्य केरो पार को नव पामतुं ए प्राप्त जेणे चार घाती कर्म ने छेदी कर्यु एवा प्रभु अरिहंत ने पंचागं भावे हुं नमुं ।। निर्वाण कल्याणक: हर्षे भरेला देवनिर्मित अंतिम समवसरणे जे शोभता अरिहंत परमात्मा जगतघर आंगणे जे नाम ना संस्मरणथी विखराय वादल दुःखनां एवा प्रभु अरिहंत ने पंचागं भावे हुं नमुं ।। जे कर्म नो संयोग वलगेलो अनादि काल थी तेथी थया जे मुक्त पूरण सर्वथा सद्भाव थी रमी रह्या जे निजरूपमां सर्व जगनुं हित करे एवा प्रभु अरिहंत ने पंचागं भावे हुँ नमुं ।। C. (अ) श्री चन्द्रप्रभ जिन चैत्यवंदन लक्ष्मणा माता जनमीओ, महसेन जस ताय, उडुपति लंछन दीपतो, चंद्रपुरीनो राय दश लख पूरव आउखुं, दोढसो धनुषनी देह, सुर नरपति सेवा करे, धरता अति ससनेह चंद्रप्रभ जिन आठमा ए, उत्तम पद दातार, पद्मविजय कहे प्रणमिये, मुज प्रभु पार उतार
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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