________________
जैन तत्त्व दर्शन
संस्कार वाटिका
• अंधकार से प्रकाश की और
............. एक कदम
अज्ञान अंधकार है, ज्ञान प्रकाश है, अज्ञान रूपी अंधकार हमें वस्तु की सच्ची पहचान नहीं होने देता। अंधकार में हाथ में आये हुए हीरे को कोई कांच का टुकडा मानकर फेंक दे तो भी नुकसान है और अंधकार में हाथ में आये चमकते कांच के टुकडे को कोई हीरा मानकर तिजोरी में सुरक्षित रखे तो भी नुकसान हैं।
ज्ञान सच्चा वह है जो आत्मा में विवेक को जन्म देता है। क्या करना, क्या नहीं करना, क्या बोलना, क्या नहीं बोलना, क्या विचार करना, क्या विचार नहीं करना, क्या छोडना, क्या नहीं छोडना, यह विवेक को पैदा करने वाला सम्यग ज्ञान है। संक्षिप्त में कहें तो हेय, ज्ञेय, उपादेय का बोध कराने वाला ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है। वही सम्यग्ज्ञान है।
संसार के कई जीव बालक की तरह अज्ञानी है, जिनके पास भक्ष्य-अभक्ष्य, पेय-अपेय, श्राव्यअश्राव्य और करणीय-अकरणीय का विवेक नहीं होने के कारण वे जीव करने योग्य कई कार्य नहीं करते और नहीं करने योग्य कई कार्यवे हंसते-हंसते करके पाप कर्म बांधते हैं।
___बालकों का जीवन ब्लोटिंग पेपर की तरह होता है। मां-बाप या शिक्षक जो संस्कार उसमें डालने के लिए मेहनत करते हैं वे ही संस्कार उसमें विकसित होते हैं।
बालकों को उनकी ग्रहण शक्ति के अनुसार आज जो जैन दर्शन के सूत्रज्ञान-अर्थज्ञान और तत्त्वज्ञान की
जानकारी दी जाय, तो आज का बालक भविष्य में हजारों के लिए सफल मार्गदर्शक बन सकता है।