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जैन तत्त्व दर्शन
(6) अक्षत पूजा
अक्षत पूजा का रहस्य
अजरामर, अक्षय पद प्राप्त करने की पूजा अर्थात् अखंड अक्षत पूजा ।
शुद्ध अखंड अक्षत ग्रही, नंदावर्त विशाल पूरी प्रभु सन्मुख रहो, टाली सकल जंजाल ||
ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरूषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय
श्रीमते जिनेन्द्राय अक्षतं यजामहे स्वाहा।
भावना
हे प्रभु! शुद्ध,अखंड और अक्षत ऐसा मुक्ति सुख प्राप्त करने की अभिलाषा से आज आपके समक्ष मैं शुद्ध और अखंड ऐसे अक्षत ले कर आया हुँ। चार गति का अनंत-अनंत परिभ्रमण कर अब मैं थक गया हुँ। अब मुझे शाश्वत पद प्राप्त करना है। जहाँ आप पहुँच चुके हैं वहाँ मुझे पहुँचना है। आपजैसा मुझे भी शुद्ध अक्षय बन जाना है। इस अक्षत के समान मुझे भी अब जन्म नहीं लेना है। जन्म-मरण की यह जंजाल अब मुझे तोडनी है। और इस हेतु तेरी कृपा प्राप्त करने आज तेरे पास आया हूँ। यह अक्षतपूजा इस उद्देश्य से ही कर रहा हूँ।
हे प्रभु! मुझे सम्यग्दर्शन दीजिए! हे प्रभु! मुझे सम्यग्ज्ञान दीजिए!
हे प्रभु! मुझे सम्यग्चारित्र दीजिए! आप मुझे य हरत्नत्रयी प्रदान कीजिए! उसके बाद तो जो मुझे प्राप्त करना है स्वयंमेव प्राप्त हो जायेगा | मैं भी अक्षय बन जाने वाला हुँऔर आपही के समीप, आपके पास बैठ जाने वाला हुँ।