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________________ जैन तत्त्व दर्शन 1. 2. 3. 4. 5. 6. प्रभु की दाढी, मूंछ, बाल, नाखून कभी बढ़ते नही है । कम से कम एक करोड देवता हमेशा रात-दिन प्रभु के चरणों मे हाजिर रहते है । प्रभु का रूप इतना सुंदर होता है कि इन्द्र जैसे इन्द्र भी प्रभु को देखते ही रहते है । भगवान जहाँ भी जाते है वहाँ 125 योजन तक किसी भी प्रकार की किसी को बीमारी नहीं होती हैं । 10. अतिवृष्टि (ज्यादा बारीश होना) नही होती हैं । 11. अनावृष्टि (बारीश नहीं होना, बारीश एकदम कम होना) नही होती हैं । 12. दुष्काल (बारीश नही होने से जल भंडार - तालाब नदी सूख जाते है, अन्न-पानी का संकट खड़ा हो जाता हैं) नही होता हैं । 7. 8. C. अरिहंत भगवान के अष्ट प्रतिहार्य 9. प्रभु जब विहार करते है, तब सब वृक्ष नमन करते है । कांटे उलटे हो जाते है । पक्षी प्रदक्षिणा देते है । आठ प्रतिहार्य आकाश में साथ में चलते है । देवता नौ सुवर्ण कमल की रचना करते है, उनके उपर ही प्रभु चलते है। प्रभु केवलज्ञान के बाद कभी जमीन पर पैर नही रखते, क्योंकि जहाँ पर पैर रखते हैं वहाँ नौ सुवर्ण कमल एक के बाद एक आ जाते हैं। लक्ष्मी स्वयं कमल बनकर प्रभु के चरणों मे रहती हैं। 13. छह ऋतुयें एक साथ रहती है। 14. रोगी - निरोगी बन जाते है । 15. सूखे बाग-बगीचे फल-फूल से लद जाते हैं । 16. युद्ध वगैरह नहीं होते । 17. भूकंप, जल प्रलय (सुनामी) आदि प्राकृतिक विपत्तियाँ नहीं आती हैं। 18. प्रभु के आगे धर्मचक्र चलता है । परमात्मा को इतना सब क्यों मिला ? तो उसका कारण है, प्रभु पूर्व के भव में सभी को संसार सागर से तारने की भावना भायी थी । यदि आपको भी भगवान बनना है, तो आज से सभी जीवों को अपने समान समझो और दुःखीयों को देखकर हदय में करुणा (दया) लाओ । किसी से द्वेष मत करो । 11
SR No.006117
Book TitleJain Tattva Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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