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_जैन तत्त्व दर्शन
B.समवसण 1. अरिहंत भगवान समवसरण में देशना देते है। 2. उसमें तीन गढ़ (तीन फ्लोर) होते है। 3. नीचे पहला गढ़ चाँदी का होता है। 4. दूसरा गढ़सोने का होता है। 5. तीसरा गढ़ रत्नों का होता है। 6. नीचे पहले गढ़ में आए हुए श्रोताओं के वाहनो की पार्किंग व्यवस्था रहती है। 7. दुसरेगढ़ में जिन वाणी सुनने आये हुए पशु-पक्षीओं की व्यवस्था रहती है। 8. तीसरे गढ़ में देव और मानवों की व्यवस्था होती है। 9. तीसरे गढ़ के बीच मे प्रभुसे 12 गुना ऊँचा अशोक वृक्ष होता है। 10. अशोकवृक्ष के नीचेस्वर्णका सिंहासन होता है। 11. सुवर्ण सिंहासन के उपर प्रभु देशना देने के लिये बैठते है। 12. रत्न जडित पाद पीठ के उपर प्रभुपैर रखते है। 13. प्रभु के आँजुबाजु मे देवता चामर ढोलते है। 14. प्रभुके मस्तक के पीछे सूर्य से भी ज्यादा तेजस्वी भामण्डल होता है। 15. प्रभु के मस्तक के उपर पिरामिड के आकर के तीन छत्र होते है। 16. आकाश में से देवता सुगंधी पुष्पों की वृष्टि करते है। 17. प्रभु की देशना प्रारंभ होने से पहले सबको समाचार (ळपीरींळेप) पहुँचाने के लिये आकाश में से
देवता देवदुंदुभी-नगाडे बजाकर घोषणा करते है। 18. प्रभुमालकोष राग में देशना देते है। 19. देव वाजिंत्र मंडली, प्रभु की देशना में संगीत का सुर पूरने के लिये आकाश में दिव्य ध्वनी करती है। 20. पूर्व दिशा में बैठकर अरिहंत प्रभु देशना देते है। 21. समवसरण के पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशा में देवता रचित प्रभु बिंब (प्रतिमा) होती है, वे साक्षात् प्रभु
समान ही दिखाई देती है। 22. प्रभु की देशना सुनने आए जन्म जात वैरी पशु-पक्षी (चूहा-बिल्ली, मोर-सांप) वगैरह भी अपने वैर
भुलाकर शांत हो जाते है, वहाँ झगडते नही है। 23. तीसरेगढ़ में देव मानवो की कुल बारह पर्षदायें होती है। 24. प्रभु की देशना 1 योजन (12 कि.मी.) तक एक समान सुनाई देती है। 25. प्रभु की देशना सबको अपनी-अपनी भाषा में सुनाई पडती है। 26. प्रभु की देशना मे सबको ऐसा लगता है कि प्रभु मेरी ही भाषा में मेरी शंका का समाधान कर रहे है। 27. प्रभु की वैराग्यमय देशना सुनकर बडे-बडे राजा महाराजा भी वहीं पर दीक्षा लेते है।