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H. कहानी द्वारा आठ कर्मों के नाम एक सेठ था, ज्ञानचन्द (ज्ञानावरणीय कर्म) । वह हर रोज दर्शन (दर्शनावरणीय कर्म) करने जाता था। एक दिन रास्ते में उसके पेट में वेदना हुई (वेदनीय कर्म) । वहां डॉ. मोहनदास आए (मोहनीय कर्म)। उन्होंने कहा तुम्हारी आयु कम है (आयुष्य कम) । भगवान का नाम लो (नाम कर्म) । तुम्हें उच्च गोत्र मिलेगा (गोत्र कर्म)। तुम्हारे सब अंतराय टूट जायेंगे (अंतराय कर्म)।
1. नवतत्त्वों के नाम, व्याख्या एवं भेद :
नौ तत्त्व - पदार्थ के स्वरूप तत्त्व के नाम भेद व्याख्या 1 जीव 14 जो जीता है, प्राणों को धारण करता है, जिसमें चेतना है, वह जीव है;
जैसे मानव, पशु, पक्षी आदि। 2. अजीव
जिसमें जीव, प्राण, चेतना नहीं है, वह अजीव है, जैसे टेबल, पलंग,
धर्मास्तिकाय आदि। 3. पुण्य 42 शुभ कर्म पुण्य है अर्थात् जिसके द्वारा जीव को सुख का अनुभव होता है,
वह पुण्य है। 4. पाप 82 अशुभ कर्म पाप है अर्थात् जिसके द्वारा जीव को दु:ख का अनुभव
होता है, वह पाप है। 5. आश्रव 42 कर्म के आने का रास्ता अर्थात् कर्म बंध के हेतुओं को आश्रव कहते हैं। 6. संवर 57 आते हुए कर्मों को रोकना, वह संवर है। 7. निर्जरा 12 कर्मों का अंशत: क्षय होना, वह निर्जरा है। 8. बंध 4 आत्मा और कर्मों का दूध और पानी की तरह संबंध होना वह बंध है। 9. मोक्ष 9 संपूर्ण कर्मों का नाश या आत्मा के शुद्ध स्वरूप का प्रगटीकरण होना, वह मोक्ष है।
कुलभेद 276
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