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औरों को ज्ञान का दान देते रहो। और जीवों को अभयदान देते रहो। साधु-साध्वीजी को सुपात्रदान देते रहो। गरीबों पर अनुकंपादान करते रहो।
दान देकर हमेशा खुशी व्यक्त करों । दान देकर कभी अभिमान मत करो । कुछ न कुछ देते रहना... देने से कभी कुछ कम नहीं होता ।
इस तरह दान धर्म की आराधना करने से
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अंतराय कर्म टूटता है।