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________________ B. नवांगी पूजा के दोहे एवं सामान्य अर्थ SIOOR 1. चरण: जल भरी संपुट पत्रमा, युगलिक नर पूजंत ऋषभ चरण अंगुठडे, दायक भवजल अंत ।। 1 ।। हे प्रभु ! आपके अभिषेक हेतु युगलिक जब पत्र संपुट में पानी भर लाए तब तक आपको इन्द्र ने भक्तिपूर्वक वस्त्राभूषण से सज्जित कर दिया था। यह देख विनीत युगलिकों ने प्रभु के चरणों की जल से पूजा की । इसी प्रकार मैं भी आपके चरणों को पूजकर भवजल का अंत चाहता हूँ। 2. जानु : जानु बले काउस्सग्ग रह्या, विचर्या देश विदेश खड़ा-खड़ा केवल लघु, पूजो जानु नरेश ।। 2 ।। हे प्रभु ! आपने इस जानु बल से काउस्सग्ग किया, देश-विदेश में विचरण किया और खड़े-खड़े ही आपने केवल ज्ञान प्राप्त किया। आपकी इस जानु पूजा के प्रभाव से मेरे भी जानु में वह ताकत प्रगट हों। 3.हाथ के कांडे: लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसीदान । LAT कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवी बहुमान ।। 3 || RES हे प्रभु! लोकांतिक देवों की दीक्षा की विनंती सुनने के बाद आपने इन हाथों से वर्षीदान दिया, आपकी इस पूजा के प्रभाव से मैं आपके समान वर्षीदान देकर संयम को स्वीकार करूँ। 4. खंभे (कंधा): मान गयुं दोय अंश थी, देखी वीर्य अनन्त । " भुजा बले भव जल तर्या, पूजो खंध महंत ।। 4 ।। हे प्रभु ! आपके अनंत वीर्य (शक्ति) को देखकर अहंकार दोनों कंधों में से निकल गया। एवं इन भुजाओं के बल से आप भव जल तिर गये। उसी प्रकार आपकी पूजा के प्रभाव से मेरा भी अहं चला जाए एवं मेरी भी भुजाओं में संसार को तिर जाने की ताकत प्राप्त हो।
SR No.006116
Book TitleJain Tattva Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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