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13. जिन पूजा विहि A. अष्टप्रकारी पूजा के दोहे एवं सामान्य अर्थ
अष्टप्रकारी
1. जल पूजा का दोहा
"जल पूजा जुगते करो, मेल अनादि विनाश,
जल पूजा फल मुज होजो, मांगु एम प्रभु पास ।" । अर्थ : विधिपूर्वक प्रभु की पूजा करके प्रभु से इस प्रकार मांगो कि, हे प्रभु ! इस पूजा के । फल से अनादिकाल से मेरी आत्मा पर लगे हुए कर्म मेल का विनाश हो जाये। ALL
2. चंदन पूजा का दोहा का शीतल गुण जेहमा रह्यो, शीतल प्रभु मुख रंग,
आत्म शीतल करवा भणी, पूजो अरिहा अंग।। ___ अर्थ : यह चंदन पूजा मेरी भावना का प्रतीक है। प्रभु मैं भी अत्यंत संतप्त हूँ। कषायों
की धधकती हुई आग से मेरी आत्मा भयंकर संताप एवं क्लेश भुगत रही है। मेरे इस - संताप को दूर करने के लिये, कषायों को हटाना आवश्यक है। आपकी चंदन पूजा के प्रभाव से मेरी आत्मा में भी कषायों की उपशांति हो। 3. पुष्प पूजा का दोहा ।
सुरभि अखंड कुसुम ग्रही, पूजो गत संताप ।
सुमजंतु भव्य ज परे, करिए समकित छाप ।। अर्थ : जिससे संताप मात्र नाश हो जाते हैं ऐसे प्रभु की तुम सुगंधित और अखंड पुष्पों द्वारा पूजा करो। जिस प्रकार पुष्प पूजा करने से उन पुष्पों को भव्यता का श्रेय मिलता है, उसी प्रकार तुम्हें भी भव्यता का श्रेय प्राप्त हो। 4. धूप पूजा का दोहा
ध्यान घटा प्रगटावीए, वाम नयन जिनधूप । मिच्छत दुर्गंध दूरे टले, प्रगटे आत्म स्वरूप ।।
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