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________________ ४६६ હૈમ સંસ્કૃત ધાતુ રૂપાવલી : ભાગ-૧ છઠ્ઠા ગણના કૃદન્ત વિભાગ વર્તમાન | वर्तमान | त्वर्थ | संबंध | भरि કર્તરિ | કર્મણિ | કૃદન્ત ભૂત કૃદન્ત ભૂત કૃદન્ત मस्ज्(२२) | मज्जत् मज्ज्यमान मङ्क्त्वा · मग्न भ्रस्ज् (२३) | भृजत् भृज्यमान भृष्ट्वा भृज्जमान भ्रष्टम् मृ (२४) म्रियमाण म्रियमाण | मर्तुम् | मृत्वा मृश् (२५) | मृशत् मृश्यमान म्रष्टुम्/मटुंम् | मृष्ट्वा रि (२६) | रियत् रीयमाण रेतुम् लस्ज् (२७) | लज्जमान | लज्यमान | लज्जितुम् |लज्जित्वा लज्जित मङ्कतुम् भटुंम् | भ्रष्ट रित्वा लग्न लोप्तुम् छ लिप् (२८) | लिम्पत् लिम्पमान लुप् (२९) | लुम्पत् लुम्पमान विद् (३०) विन्दमान विच्छ् (३१) | विच्छायत् विन्दत् विजितुम् विज् (३२) |विजमान व्रश्च् (३३) वृश्चत् लिप्यमान लेप्तुम् लिप्त्वा | लिप्यमान लेप्तुम् लिप्त्वा लुप्यमान लुप्त्वा लुप्यमान लोप्तुम् लुप्त्वा लुप्त विद्यमान वेत्तुम् । विदित्वा |विन विद्यमान वेत्तुम् । विदित्वा. वित्र | विच्छाय्यमान | विच्छायितुम् | विच्छायित्वा विच्छायित विच्छ्यमान |विच्छितुम् |विच्छित्वा । |विच्छित | विज्यमान विजित्वा विग्न वृश्च्यमान वश्चितुम् वश्चित्वा वृक्ण व्रष्टुम् सुयमान सवितुम् सूत्वा |सून क्षिप्यमान | क्षेप्तुम् क्षिप्त्वा |क्षिप्त क्षिप्यमान क्षेप्तुम् क्षिप्त्वा | क्षिप्त | स्वज्यमान स्वक्तवा स्वङ्क्त उञ्छ्य मान उञ्छित्वा उञ्छित विश्यमान वेष्ट्वा | विष्ट |विच्यमान व्यचितुम् विचित्वा विचित सू (३४) क्षिप् (३५) | | सुवत् | क्षिपत् क्षिपमाण स्वञ् (३६) | स्वजमान उञ्छ् (३७) | उञ्छत् विश् (३८) | विशत् व्यच् (३९) | विचत् उञ्छितुम् वेष्टुम्
SR No.006058
Book TitleHaim Sanskrit Dhatu Rupavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshchandra Kantilal Mehta
PublisherRamsurishwarji Jain Sanskrit Pathshala
Publication Year2006
Total Pages298
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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