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________________ ७२ मानधन ५६ - 93 प६ - 93 व्रज. ॥१॥ व्रज. ॥२॥ व्रज. ॥३॥ व्रज. ॥४॥ (२।। - भा) व्रजनाथसें सुनाथविण, हाथोहाथ बिकायो | विचको कोउ जन कृपाल, सरन नजर नायो. ॥ जननी कहुं जनक कहुं, सुत सुता कहायो | भाइ कहुं भगिनी कहुं, मित्र शत्रु भायो. || रमणी कहुं रमण कहुं, राउ रजतुलायो | देवके पति इन्द्र चन्द्र, कीट भंग गायो । कामी कहुं नामी कहुं, रोग भोग मायो | निशपतिधर देह गेहह धरि, विविध विविध धरायो | विधनिषेध नाटक धरी, भेख आठ (ठाय) छायो । भाषा षट्वेद चार, सांग शुद्ध पढायो. ॥ तुमसे गजराज पाय, गर्दभ चढी धायो | पायस सुग्रहका विसारी, भीख नाज खायो. ॥ लीलाभु हटुक नचाय, कहोजु दास आयो । रोम रोम पुलकित हूं, परम लाभ पायो. || ऐरि पतितके उधारन तुम, कहिसो पीवत मामी । मोसु तुम कब ऊधारो, क्रूर कुटिलकामी || और पतित केइ उधारे, करणी विनुं करता ॥ एककाही नाउं लेउ, जूठे बिरुद धरता. ॥ करनी करी पार भए, बहोत निगम साखी ॥ शोभा दइ तूमकू नाथ, अपनी पत राखी. ॥ व्रज. ॥५॥ व्रज. ॥६॥ व्रज. ॥७॥ व्रज. ॥८॥ व्रज. ॥९॥ व्रज. ॥१०॥ ભૂલ થાય એની માફી હોય પણ ભૂલ કરે તેની માફી ન હોય.
SR No.006025
Book TitleParampaddai Anandghan Padreh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryavadan T Zaveri
PublisherShreyaskar Andheri Gujarati Jain
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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