________________ પરિવારને આપવા બદલ અમો હરહંમેશ પ્રકાશકોનાં ઋણી अध्ययन कर असीम उपकार किया था। पूज्य मुनिराजश्री वैभवरत्न 24ii|. विजयजी म.सा.ने ग्रन्थरत्न के प्रथम भाग का अनुवाद कर प्रकाशित આ ગ્રંથ સૌ કોઈના મોક્ષલક્ષનું કારણ બને તેજ મંગળ करवाकर जिज्ञासुओं पर उपकार किया है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मुनिराजश्री का यह ज्ञानयज्ञ निरन्तर चलता रहेगा और एक કામના સહ दिन वे सभा सातों भागों का अनुवाद का एक कीर्तिमान स्थापित महायुनीलाल नागरास परिवार करेंगे। में उनके इस कार्य की अनमोदना करते हुए ડૉ. તેજસિંહ ડ - ઉર્જન દ્વારા से हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ कि वे अपने इस कार्य में पूर्ण सफल हों। श्रद्धय आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय जयन्तसेन પ્રેષિત શુભકામના પત્ર सूरीजी म.सा. का आशीर्वाद उनके साथ है जो उन्हें सफलता दिलाने के लिये पर्याप्त हो / एक बार पुनः हार्दिक हार्दिक शुभकामना शुभकामनाएँ। डॉ. तेजसिंह गौड, उज्जैन (म.प्र.) विश्वपूज्य, प्रातः स्मरणीय गुरुदेव श्रीमज्जैनाचार्य श्रीमद् (2.2. संघवी (थाel) द्वारा भजेलो विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. जितनी उच्च कोटि के साधक શુભકામના પત્ર. थे, उतने ही श्रेष्ठ साहित्य मनीषी भी थे। इसका प्रमाण उनके द्वारा विविध विषयक लिखित, अनुदित ग्रन्थ है। उनके द्वारा लिखित રચાયેલ અભિધાન રાજેન્દ્ર કોષ” શ્રેષ્ઠ અમર કૃતિ बहुचर्चित विश्व विख्यात ग्रन्थरत्न है 'अभिधान राजेन्द्र कोश / ' इस ग्रन्थरत्न का लेखन गुरुदेव ने अपने सियाणा चातुर्मास में 3 સ છે. જે સંસ્કૃત અને પ્રાકૃત ભાષામાં હોવાથી ઘણા લોકો એના और सामथायितता. सेना प्रथम भागनु राती अनुवाद वि.सं. 1960 चैत्र शुक्ला त्रयोदशी (महावीर जयंती) को उनका प्राशन स्वाध्यायीमी भाटे ७५योगी थशे.जी भाग यह लेखन पूर्ण हुआ। यह कोशरत्न सात भागों से विभक्त है और 5 / पूम 46 प्रशित थाय से सभ्यर्थना मने प्राशन प्राकृत भाषा का महाविशाल कोश है।। भाटेपून-पूनमत्मिनंहन. वर्तमान समय में भौतिक में संस्कृत और प्राकृत भाषाओं के विद्वानो तो ठीक जानकार भी नहीं के बराबर है। जैन विद्या के , | સુવિશાલગચ્છાધિપતિ પ.પૂ. આચાર્યદેવેશ શ્રીમદ્ अध्ययन के लिए यह महाकोश अत्यन्त आवश्यक है। इसके વિજય જયન્તસેનસૂરીશ્વરજી મ.સા.ના આશીર્વાદથી અને તેમની अध्ययन के बिना जैन विद्या का अध्ययन अधूरा ही रहा जाएगा। પાવનપ્રેરણાથી પૂ. મુનિશ્રી વૈભવરત્ન વિજયજી શ્રુતસેવા। एस ग्रन्थरत्न पर शोधार्थियों ने शोधकार्य की पी.एच.डी. की प्राशन मभूत अर्थरी २६॥छ.तबहसमनिल भारतीय उपाधि प्राप्त की थी और आज भी अनेक विषय अछूते ही है। त्रिस्तुति छैन संघ गौरवनो अनुभव छ. हा इस पर और अध्ययन न हो पाना भाषा की अनभिज्ञता ही कही शुभकामना. जा सकती है। इस ग्रन्थरत्न की उपयोगिता को ध्यान में रखकर कई જ્ઞાનનો મહાસાગર वर्षों से इसके हिन्दी अनुवाद को आवश्यकता की चर्चाचल रही थी। कुछ कार्य भी हुआ किन्तु पुनः बन्द हो गया। ऐसा क्यों होता 5.5. भुनि२०% श्रीवैभवरत्नाव४५०० म.सा. रहा यह एक अलग प्रश्न है / स्वयं राष्ट्रसंत आचार्य श्रीमद् सा६२ वहना विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. भी इस विषय पर अनेकबार मा५श्री सुजातामieशो. विचार मंथन कर चुके है और अज्ञात समस्याओ के रहते अनुवाद પ્રાતઃ સ્મરણીય વિશ્વ પૂજ્ય દાદા ગુરૂદેવ 5.5 આચાર્ય कार्य नहीं हो सका / हार्दिक प्रसन्नता की बात है कि श्रद्वेय भगवंत श्री २।४न्द्रसूरीश्व२७ महा२४ मे आने अंथोनी आचार्यश्री ने विद्वान शिष्यरत्न मनिराजश्री वैभवरत्न विजयजी २यनारी शासनने भेट रेल. छे. सासर्वे अंथोमा शिरभोर म.सा.ने कठोर अध्यवसायपूर्वक प्रस्तुत ग्रन्थरत्न के प्रथम भाग मेवो भागमा पूज्यश्री. द्वारा रयायेदशानना महासागर का हिन्दी अनुवाद ही उसे 'शब्द का शिखर' के नाम से प्रकाशित सभी अभियान २।४न्द्रीष४ तेमाश्रीनीवर्षानी तूट संयभीकरवा रहे है। I તપસ્વી જીવનની સાધનાનું મૂર્તિમંત સ્વરૂપ - વિદ્વત્તાનો અજોડ परम श्रीद्वेय गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरिजी म.सा.ने नमुनो. उक्त ग्रन्थरत्न की रचना नित्यानने (99) ग्रन्थों का तल स्पर्शी पूज्य साधु-साध्वी भगवती 4 नहि परंतु विश्वमा 10