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________________ 11. 4.पू. श्री युगलूषाविनयक सह गुरुल्यो नमः ॥ रानुपादान. 3 योपाटी शुक्रवार २८-१-८४ खनंत उपकारी, अनंत ज्ञानी श्री तीर्थंकर .. श्री जहार डा स्थापना हुवे छे. परमात्मा भगतना कव मात्र ने ·3137 ज्ञान प्रहान खा भगतमा मोटामा मोटो ol ज्ञानी योनी दृष्टि से भेडो उपहार होता ये है भवने साथी खात्म उल्याणूना दृष्टि व्यापची खात्मा आहे. हितकारी ने सहतकारी शुद्धते व टुष्टि प्रलु भगत ने धर्मगुरूने वय ३२४.३५ क्वाहारी इथे शुं स्थावे छेडे नर्थनी आज्ञा मुब्ज के हितडारी ने सत्य होय ते भगत ने 4 ये छे. पने शासनमा घूरना खाज्ञा गाव. ज्ञानरूप संधहारमा करवा मारे धर्मवीर्थनी न तमने नमे (श्रोता) प्रोटाने खोटा तरीड़े छोडी राडो सायाने साया तरीके खायरी नं राडी ते जराजर छे. चहा धर्मने धर्म तरीके स सूधर्म ने अधर्म तरीडे स्वीकारखा तो भेखे क खाछामां खोछी खासी सायंडात तो भेळचे ४. हितकारी ने अहितकारी नभे જણાવવું જ भेटखे या बघु यहां समारे स्वतंत्र जुधिधी डहेवानुं नथी, परंतु पूर्ण ज्ञानी खोना वचनना योग्य रखने योग्य वेखयोग्य नगाववानुं छे. खप्यारे तमे डां0 A grade ना साधक नही, तमाश भवनमा अप्यारे खदर्मनी हिचा खो याते छे. पैसा कमाल छो, सायवो छो ने तेनाथी मोम यहा साधार योग्य न घवी तेनें
SR No.005862
Book TitleAnukampadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugbhushanvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages400
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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