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गय.यू. श्री युगभूषायिन्यक बहगुरुल्यो अनुच्या हान
शुक्रवार
साथी
नम
कातना
परमात्मा मांटे धर्मवीर्धनी
पनंत उपकारी बनंत ज्ञानी श्री नीलँड २ कवमात्र ने बहुधर्मनी चिनी आदित स्थापना ९३
सायो
ज्ञांनी खोनी हस्तिये वेले यहा धर्मनी साधनांमा करतो होच नेने पहेला इथि जहसवी यि खाया च्छी ४ प्रवृत्ति - परिणामी
आईल
प्रतिश्पर्धी चाय खर्शयः खागमो टडी नक शडे.
धर्म गमे तेने पधर्म न युष्य गये नेने
थाप न
४ गमे ४ गमे
योपाटी
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प्रेम तमारी खागत गमे नेटली स्वादिष्ट वानगी होय या शर्य न होयनों ने परागे जावतों शुं याच ? खर्शयपूर्वक जावतो मल स्पावे? रखने खानो खादा यछी चहल साल नधी ममतो या खकले थाय छो प्रेम हथि ने लूज लोकनमा पावश्यक छ पछी ते हितकारी जने छे तेवी वं रीते धर्मस्थी लोकन यहां हितकारी व्यारेक बने भ्यारे तेने या धर्म इदी लोकन मारे तीव्र यि उत्पन्न याय समारे साया श्रोतावर्ग ने वारंवार उपदेश खायवानी छे बेधी नेमनी यि चेहा बाय पछी तो ति लबे लालो खाधा वगर रहेबानी ४ नंधी साम हाय ने पायाना धर्म साधे ४ बांधी छे
जधान
शुभ भावों अत्ये बहुमान - परिदानी शय क्या
जद्दी पर्यायवाची शब्द छे. धाय तो तेना
या जधा चेहा
खधर्म- होय