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________________ 270 पतिमंत्रित होय, विशिष्ठ डोटिना मंत्रनु तेमा खाधाना श्वामा ख होय तो को अमृततुल्य जनी शडेसे. गुलाधमो खून विवेक द्वारा युष्य आत्ममक्षित धाय छे, प्यारे लोग भोगवता हो चला चुल्य खात्याने अमृत तुल्य जने से पछी के पुष्यधी लोग, लोगधी चायने पायधी दुर्गात ने दुर्गतिथी 20 लाख लवोनी परंपरा या बहु या समृत तुल्य पुण्याली खुडी भ साधु खयवाहू अनुउंचा खाज्ञा साधे उरे (अनुउंचा) तो चुल्यानु अंधी पुख्य जंघाय के. खांगण पहला कही गया छेडेनुड्या युल्यबंधन डारदा छे, ने सुपात्र मोक्षन डारा के (ख) खनार्थदेशनी अनुड्या तुखा युत्यने पाय धराधरे (2) खार्थदेशनी नास्तिकतुल्य या केनामा धर्मदृष्टि नही ते हया- परोपकार कला मैत्री द्वारा तुर य साधे पाय धरंग बांध या अनुजवतो चापनों मार्गे रेड श्राव usat: (3) सार्यदेशनी बस्तिल्य, धर्मदृष्टि वाजा सहायारी सत्प्रवृत्ति आश ने सोडिड हया हानशी जैछ, युरचने पाडो या अनुबंध तो चापनो ४ चाडो चा सार्यदेशमा छैन शासनना लगवावन मुबज शासन प्रत्मावूनाना तथा इत्यासना खाशय परेश राय ने विवेक सांधे के अनुच्या दरशेते खात्माने जवी पुण्य जाधशे (४) खाज्ञा : खात्ल उरठ्ठठ युयान r खाजामा प्रवृत्तितो धननी के सीभ नास्तिक-नास्तिक मार्च-नाचे ङे छैन धमी स्या -
SR No.005862
Book TitleAnukampadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugbhushanvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages400
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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