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1 मने साधुकवन माटे चूज ४ उन्होलाव थयो छे तो १५१ के मारामा साचात होयतो मने साधुकवन स्याम खयवाह उपे लायडात प्रमाले धंधे राडे... चला राकमार्गनु उत्थान न दुराय.
खापो
14. पू. श्री चुगलखाविक्यक सहगुरुल्यो नमः ॥ खनुउंचाहान योपाटी
१२. ८.९४ शुक्रवार
अनंत उपकारी खनंतज्ञानी श्री तीर्थंडर परमात्मा भगतना भवमात्रने श्रेष्ठ परोपकार करवानी ભાવનાથી ધર્મતીર્થની સ્થાપના
९३ छे
ज्ञानी खोंनी दृष्टिजे या वगतमा परोपकार थे उत्तम धर्म छे डोঘचल खात्माने धर्मनी प्राप्ति
दुरावली ने श्रेष्ठ परोपकार के जीनू उपारोती थोडो ४ वजन शीति खाये थे, भ्यार
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पोल सुधारे थे, रखने लवांतरे श्रेश्रेष्ठ मार्ग मजेछे स्थायी प्रवृत्तिने समयड उपकार उहे छे. तीथंड से ठेवजज्ञान पाने नी तेमनो मोक्ष नडंडी व्हाय छे धानीडर्मना जंधन तूटरी छे गया इजनी होघे खाशा नही छत्ता खावो परोपकार रे छे. तीर्थंकरों छैन शासननो यथार्थ लालो करे छे. भूमिका प्रमाले પરોપકારની પણ ભૂમિદા બદલાવ છે. બધા ગુણ साथै परोपकार मान्य माटे कव सायक भैच्खे लेनामा उपहारने भूलवा बेट्नु यहा स्तर के तैयार परोपSIR उधौ पडे हे तीर्थपुरोने भगतना कपमागनी
छे
या परोपकार डरबॉ
नायु होत