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________________ छू ४ भगतना भुव शिखरोट पनिछना मूल हजाण्या वगर खाये राम्रो ते न ४ खाले कातनां कवो लौतिक दुःखमांधी मागवा होचू खने लौतिक सुखू मेणववा मांगता होचतो पूर्व ९२५ ते - उद्देश नही : तेथी मात्रनी लीति नहि या स्पात्मिक घ्या खाना अधा तीर्थ लावना से क लावी के संसार स्वरया पछी तेममा दुःखहर्द के तेमना प्रत्ये रानो लाव बच्चो त्यारे खेम वियार्यु 3 तिमने मुउन दुरखा होय तो 'सवि कुल ९३ : शासन ऐसी برة तीर्थ पहा खेम नही विचार्य ङे केटला गरीज होय तेमने श्रीमंत जनाची ही माहाने साथ डरी उ, कृष्णू वरक्याने पनपाशी खापु, मोन्मूलन सदिनों खाप प्रेम करता प्रयाय दुःख, शोड संताप रहे क नाह. खावी लावना राजवी खराझ छे उरावाच कूला:-केटला यावे नेटला जधीने धर्म यमाडगार साहेज के भव धर्म पाजला मारे लायक होच तो धर्म करावाय, खेमनेम वजगाडाच नहि पराली धर्म न खनुउपा करवा चोग्य के व्यखावे ने नमने भै तेनामा साचडात सांगे तो धर्म चमाडवा जधी उपयोग कर वो लेखे. तेथी लाव घ्या बावला माटे केटली घेण्य ध्या दुखी पडे ते योग्य छे, हप्यध्या करता साधे समयवे के तारा पूर्वकर्मना उध्ये खाली परीस्थित खावी छे, वैनाथी संताप लोगवी यो छे नाहू वियार पुश्ता तुं धःा यांने विमा या लवमा खनतद्वाज हुर्गातिमा खा
SR No.005862
Book TitleAnukampadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugbhushanvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages400
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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