SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 145 चंधडूमुनि मुनीसुव्रत- स्वामी ना शासनमा er गया का तानप00 शिच्या हता. लगवाननी हुनशाम सहेहे वियरी रहया हुता. तेमने देशना सोलजे छेने खाराधना करे छे. लकित 5वे छे. खा खंधक मुनि धागा वजनबी जहन जनेची नशा वसूना હતા ત્વ न गया होवाथी तेमूने कवानो घरगो छ खागूह हुतो वाची सुनि से जानु पियरवानु वीयाने छे खेखो पोते राक्छुमार हूँता ज्ञान ध्यान की महान धर्माचार्य बनेला है. खे न्ता पहेला अलुनी खाज्ञा सेवा कय छे ने पूछे छे डे खाशीने पॅट शिच्यो बायें क्या जानु भाउ ? परंतु तो केपजज्ञानी होवाथी भगता होय छे, हित तो मौन रहे. मान बेहया अत्भु • लागेतो 95 नवाज खायें हितान हे खाय या धमाचार्य मुनि चल शाखा लगेला हता तेथी विचारे छेडे अजुना मौननु डारा शुं तशे माझ पहिन तो बधानुं नहि होय. ने? इरीधी पूछता प्रत्यु हे छे डे तमारा બિચારણમાં ૫૦૦નું હિત છે तमाइ खहित हे. या छत्ता चपखंड मुनिने थाच छे डे के 400नु हित धतु होय तो देनी सामे लसे मार खाहत घाच. परोपकारनी लावना हैवी अजण हरी: स्वडत्याहून 12 e sal, ने 5899 समे विहार उरीये छीने प्यारे आलु मौन रहो गया है. खंड मुनिने मनशी शिष्योनु हितनो प्रभु उत्सास तेही नवा 400 नीडये छे जहन जनेबी ܘ चटग हों जानु सामैच
SR No.005862
Book TitleAnukampadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugbhushanvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages400
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy