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________________ नगर में किया, चौथा फिर आगरे में किया । फिर वहां बादशाह की गोष्ठि वास्ते श्री शांतिचन्द्र उपाध्याय के छोड गये और आप गुरुजी मेहडते, नागपुर चौमासा करके सिरोही नगर में गये । वहां नवीन चतुर्मुख प्रसादा में श्री आदिनाथ के बिंब तथा श्री अजितनाथ के प्रासाद में श्री अजितनाथ के बिंबों की प्रतिष्ठा करके अर्बुदाचल में यात्रा करने को गये । और पीछे श्री शांतिचंद्र उपाध्याय ने नवीन कृपारस कोश नामा ग्रन्थ बना के अकबर बादशाह को सुनाया, उसके सुनने से बादशाह ने दया की बहुत वृद्धि की । उसका स्वरूप यह है-बादशाह के जन्म के दिन से एक मास और पर्युषणा के बारह दिन तथा सर्व रविवार तथा सर्वसंक्रांति के दिन, नवरोज का मास, सर्व ईद के दिन तथा सर्व मिहर वासरा, सर्व सोफीअना दिन इत्यादि सब मिलकर एक वर्ष में छे महीने तक जीवहिंसा बंद कराई । उसके फरमान लिखवाए, सो फरमान अबतक हमारे लोगों के पास हैं । इसमें कुछ शंका नहीं कि श्री हीरविजयसूरिजी ने जैनमत की वृद्धि और उन्नति बहुतक की ! मुसलमानों को भी जिन्होंने दयावान् किया तथा स्थंभस्तीर्थ में संवत १६४६ में स्थंभतीर्थवासी शा० तेजपाल के नवा मंदिर की प्रतिष्ठा की । 卐 २३५
SR No.005849
Book TitleHir Swadhyaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages356
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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