SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगरा महुवा मालपुर, पटणा सांगानेर । नमुं प्रतिमा स्तूप पादुका जयपुर आदि शहेर ॥ ५॥ " (ढाल-८) (तर्ज-सरोदा कहां भूल आये) आवो भाई - आवो, गुरु के गुण गाओ ॥ टेर॥ देवीं कहे देवेन्द्र सूरिके, चरण कमल में जाओ । बढती उन्ह के गच्छ की होगी, कुपथ में मत जाओ ॥ गुरु० ॥ १ पद्मावती कहे तिलक सूरि के, शिष्य को स्तोत्र पढ़ाओ । प्रतिदिन तपगच्छ बढ़ता रहेगा, प्रभसूरि! मत घबराओ ॥ गुरु० ॥ २ मणीभद्र कहे दानसूरि को, विजयदान वरसावो । कुशल करूंगा विजय तपाका विजय ध्वजा फरकावो ॥ गुरु० ॥ ३ ऐसे गच्छ में जगदगुरु, श्री हीरसूरि को गावो । वर्ष इक्कीस हजार चलेगा, वीर शासन मन लावो ॥ गुरु० ॥ ४ देश प्रदेशों में क्यों दोड़ो, गुरु चरणों में जावो । संग्राम सोनी पेथड़ सम ही, लक्ष्मी इज्जत पावो ॥ गुरु०॥ ५ जगद्गुरु के . चरण कमलमें, फलपूजा फल पावो । चारित्र दर्शन ज्ञान न्याय से, जय जय नाद गजावो ॥ गुरु० ॥ ६ - काव्यम्-हिंसादि० । - मंत्र-ॐ श्री० फलं समर्पयामि स्वाहा । .... ... कलश - (राग-वढंस-अबतो पार भये हम साधो) आज तो जगद्गुरु गुण गाया, आनन्द मंगल हर्ष सवाया ॥ टेरा॥ .. वीर जगत्गुरु पाट परंपर हुये सूरि गणी मुनिराया । हुये बुद्धिविजय गणी जिनने, संवेगरंग का कलश चढाया ॥ १॥ DOCTOR COCO
SR No.005849
Book TitleHir Swadhyaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages356
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy