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________________ संवत् पन्द्रहसो मान, तिर्यासी मिगसिर जाण 1 हीरजी का जन्म प्रमाण, शान शौकत जो कुल की बढावे ॥ धन० ॥ ३ ॥ शिशु वय में हीर सपूत, परतिख ज्यूं शारद पूत । बल बुद्धि से अद्भूत, ज्ञान क्षय उपशम के ही प्रभावे ॥ धन० ॥ ४ ॥ पड़िक्कमणां प्रकरण ढाल, योगशास्त्र व उपदेशमाल । पयन्ना चार रसाल, पढे गुरु के भी दिलको लुभावे ॥ धन० ॥ ५ ॥ हीरजी पाटण में आय, नमें दानसूरि के पाय । सुने वाणि हर्ष बढाय, पाकदिल संयम रंग जमावे ॥ धन० ॥ ६ ॥ पन्द्रहसे छ्याणु की साल, से दिक्षा हीर सुकुमाल । बने ही हर्ष मुनि बाल, न्याय आगम का ज्ञान बढावे ॥ धन० ॥ ७ ॥ संवत सोला सो सात, पन्यास हुये विख्यात । हुये वाचक संवत आठ, पाट सूरि की दसमें पावे ॥ धन० ॥ ८ ॥ हुए पूज्य सूरीश्वर हीर, नमे सूबा राज वजीर । चन्दन चर्चित गंभीर, धौर चारित्र सुदर्शन गावे ॥ धन० ॥ ९ ॥ काव्य- हिंसादि० मंत्र - ॐ श्रीँ चन्दनं समर्पयामि स्वाहा ॥ २ ॥ ० तृतीय पुष्प पूजा दोहा हीरहर्ष हुये सूरि, हुआ घरघर आनन्द I शासन की शोभा बढी, यश फैला गुण कन्द ॥ १॥ (ढाल ) (तर्ज-कदमों की छाया में प्रभु के पैर पूजना ) हीर सूरीश्वर जी, गुरु के गुण गाइये ॥ टेर ॥ हीर मुनीश्वर, हीरसूरीश्वर, हीरसूरीश्वर अकल महिमा रे भक्ति से फल पाइये ॥ हीर० ॥ १ ॥ २०९
SR No.005849
Book TitleHir Swadhyaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages356
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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