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________________ १३ श्री जसविजयरचित दादाजी श्रीहीरविजयजी स्तवन ( चाल - रेखता ) श्रीगुरु हीरदेवके दर्शन, दिल मुज होत हे परशन् । होत आनन्दधन मेरे, सम्पत्ति मिलत बहुतेरे श्री० ॥ १ ॥ गुरु ! तुम ध्यान दिल्ल धारूं, श्रीगुरु चरणकी सेवा, सेवक कुं 4 दादा ! दरसण मोहि दीजै, दादा तुम सोहिला कीजै । जे कोई समरण डो पावे, तोअ चिन्ती लक्ष्मी घर आवै श्री० ॥ ३ ॥ । दुरबुद्धमती दूरवरूं दीजिये मेवा श्री० ॥ २ ॥ दादा ! तुम समरण करती, बाट घाटमें सुखै बहन्ता । भीत उपद्रव सहू जावै, श्रीगुरु ध्यान दिल ध्यांवै श्री० ॥ ४ ॥ दादा ! हम अरज दिल धारो, सेवकके कार्य सहु सारो । श्रीवीजैहीरसूरी देवा ! पावे सुजश तुम गुरुसेवा श्री० ॥ ५ ॥ 卐 १८७
SR No.005849
Book TitleHir Swadhyaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages356
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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