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ए६
॥ १ ॥ उलालो ॥ उछेद कर्म अनादिसंतति, जेह सिद्धपएं वरे ॥ योगसंगे श्राहार टाली, नाव छा क्रियता करे | अंतर मुहूरत तत्त्व साधे, सर्व संवरता करी ॥ निज श्रात्मसत्ता प्रगटजावे, करो तप गुण यादरी ॥ २ ॥
॥
॥ ढाल ॥
॥ एम नवपद गुणमंगलं, चन निक्षेप प्रमाणे जी ॥ सात नये जे यादरे, सम्यग्ज्ञानने जाऐ जी ॥ ॥ ३ ॥ जलालो ॥ निर्द्धारसेती
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