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ज्य निजेठा खजावा ॥१॥ होय पंच मत्यादि सुझाननेदे, गुरूपास्तिथी योग्यता तेह वेदे ॥ वली झेय हेय उपादेय रूपे, लहे चित्तमां जेम ध्वांत प्रदीपे ॥२॥ ॥ ढाल ॥ उलालानी देशी ॥
॥ नव्य नमो गुणज्ञानने, खपर प्रकाशक नावे जी ॥ परजय धर्म अनंतता, नेदानेद खनावे जी ॥१॥ उलालो ॥ जे मुख्य परिणति सकलायक, बोध नावविलखना ॥ मतिश्रादि पंच प्रकार
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