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॥ सि० ॥ ॥ अढार सहस्स शीलांगना धोरी, अचल आचार चरित्र ॥ मुनि महंत जयणायुत वंदी, कीजे जनम पवित्र रे॥ ॥ सि० ॥३॥ नवविध ब्रह्मगुप्ति जे पाले, बारसविद तप शूरा ॥ एहवा मुनि नमीए जो प्रगटे, पूरव पुण्य अंकूरा रे ॥ न०॥ सिम ॥२४॥ सोना तणी परे परीक्षा दीसे, दिन दिन चढते वाने ॥ संजमखप करता मुनि नमीए, देश काल अनुमाने रे॥नासि॥२५॥
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