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ग्रंथि टाली, होये मुक्तिने योग्य चारित्र पाली ॥ शुनाष्टांग योगे रमे चित्त वाली, नमुं साधुने तेह निज पाप टाली ॥२॥ ॥ ढाल ॥ उलालानी देशी ॥
॥ सकल विषय विष वारीने, निःकामी निःसंगी जी ॥ नवदवताप शमावता, आतमसाधन रंगी जी ॥१॥ उलालो ॥ जे रम्या शुद्ध स्वरूप रमणे, देह निर्मम निर्मदा ॥ काउस्सग्ग मुसा धीर श्रासन, ध्यान श्रन्यासी सदा ॥
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