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दव जुत्ताजी॥ सच्चं सोयंथकिंचणा, तव संजम गुणरत्ता जी ॥१॥ उ. लालो ॥ जे रम्या ब्रह्मसुगुत्ति गुत्ता, समिति समिता श्रुतधरा ॥ स्याछादवादे तत्ववादक, श्रात्म पर. विनजनकरा ॥ नवनीरू साधन धीरशासन, वहन धोरी मुनिवरा ॥ सिकांत वायण दान समरथ, नमो पाठक पदधरा ॥२॥ ॥पूजा ढाल॥श्रीपालना रासनी॥
॥ द्वादश अंग सिजाय करे जे, पारग धारग तास ॥ सूत्र अर्थ
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