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देश काले, सदा अप्रमत्ता यथा सूत्र थाले ॥ जिके शासनाधारदिग्दतिकल्पा, जगे ते चिरं जीवजो शुद्धजल्पा ॥२॥ ॥ ढाल ॥ उलालानी देशी ॥
॥ श्राचारज मुनिपति गणि, गुणवत्रीशी धामो जी ॥ चिदानंद रस स्वादता, परनावे निःकामो जी ॥१॥उलालो॥ निःकाम निर्मल शुद्ध चिद्घन, साध्य निज निरधारथी॥ निज ज्ञान दर्शन चरण वीरज, साधनाव्यापारथी ॥ नविजीव बोधक
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