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सदा वासीयो श्रातमा तेणे काले ॥३॥ किंके तीर्थंकर कर्म उदये करीने, दीए देशना नव्यने हित धरीने ॥ सदा आठ महापामिहारे समेता, सुरेशे नरेशे स्तव्या ब्रह्मपुत्ता ॥४॥ कस्यां घातियां कर्म चारे अलग्गां, नवोपग्रही चार जे के विलग्गां ॥ जगत् पंच कल्याणके सौख्य पामे, नमो तेह तीर्थकरा मोदकामे ॥५॥ ॥ ढाल ॥ उलालानी देशी॥ ॥ तीर्थपति अरिहा नमुं, धर्म
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