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बत्ती सलगावीने मुख थकी श्रा गाथा कढेवी:
॥ अथ आरति गाथा ॥
॥ जं मरगय मणि गडिय, विसाल थाल माणिक मंमिय पईवो ॥ एहवण यरकुरु खित्तं, जम जिए आरतियं तुम्हें ॥ १ ॥ श्रारत्ति नियष्ठय, जिणस्स धूव किसणागरुछायं ॥ पासेसु नमउ निकिय, संगमय विभिन्न दिहिव ॥ २ ॥ पसणेयवो जवंतर, समद्वियं कम्मरेणु संघायं ॥ श्रार
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