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सूरि पाठग, साहूणं फाण जोग निरयाणं ॥ सुयदेवय माश्णं, समुकुर्ड मे श्मे धूर्ज॥५॥
॥ए गाथा कह्या पठी प्रथम श्रदतने धो तेउँने केशर तथा चंदन लगामवां, तथा पुष्पोने पण जलश्री शुरू करी राखवां, तदनंतर ते अदत तथा फूलनी कुसुमांजलि हाथमां लश्, उना थश्ने " नमो अरिहंताणं, नमोऽहंसिका" ॥ एम पाठ कहेवो,
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