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धरीने पनी स्नात्रीयाए पोताने हाथे मौलीसूत्र बांधवं, तथा बीजा कलश प्रमुख स्थानके मौली बंधन करी, कलशने धूप दक्ष, मुध, दधि, घृत, जल तथा शर्करा, ए पंचामृतथी कलश जरी राखवा. पली मुखकोश बांधी मूलनायकजी श्रागल श्रावी नमस्कार करी, अने धूपधाएं हाथमां लश् धूप उखेववो ॥ ते समये मुखथी धूपावबीनी गाथा कहेवी,ते था प्रमाणे:
असुरिंदसुरिंदाणं, किन्नर गंधव
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