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जंते वर नादे ॥ सुरपति संघ अमर श्री प्रजुनी, जननीने सुप्रसादे ॥ आणी थापी एम पयंपे, अम निस्तरीया श्राज ॥ पुत्र तुमारो धणी हमारो, तारण तरण जहाज ॥५॥ मात जतन करी राखजो एहने, तुम सुत अम आधार ॥ सुरपति जक्ति सहित नंदीश्वर, करे जिननक्ति उदार ॥ निय निय कप्प गया सवि निर्जर, कहेतां प्रजु गुणसार ॥ दीदा केवल ज्ञान कव्याणक, श्या चित्त मजार ॥६॥
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