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१५ए क्षिण देवा ॥श्रा॥॥ जिम जिम जलधारा देजपे,तिम तिम दोहग थरहर कंपे ॥ श्रा० ॥ बहुनव संचित पाप पणासे,अव्यपूजाथी नाव उबासे ॥ आ॥४॥ चौद जुवनमां जिनजीने तोले, को नहीं आरति एम बोले ॥या॥॥ति आरतिः॥
॥अथ मंगलदीपकः ॥ ॥दीवो रे दीवो मंगलिक दीवो, जुवन प्रकाशक जिन चिरंजीवो ॥ दी० ॥१॥ चंद सूरज प्रजु तुम मुख केरां, खूबण करता दे
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