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॥ ४ ॥ तिहा हु सनाथ उत्र शिर सोहे, ढाले चामर सुरेंदो जी ॥ पहुता सुर मली प्रभुथानकवर, लब्धिपात्र जयवंतो जी ॥ ५ ॥ नवपल्लव जिन महिमासागर, आगर तपो भंडारो जी ॥ इकागवंस तिदुयण मनरंजण, जिनशासन सिपगारो जी ॥ ६ ॥ जणे वचजंगारी श्रम मन, वसीयो श्रीश्ररिहंतो जी ॥ नीलवरण तनु महिमासागर, जय जय जगवंतो जी ॥७॥ इति श्री पार्श्वनाथ कलशः संपूर्णः ॥
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